Friday, September 10, 2010

दुनीया भीखारी नजर आती हैं


Yuva kavi sammelan @ hotel chanra inn, johpur.
where i read my latest poem..

दुनीया भीखारी नजर आती हैं

ये बेतरतीबी कुछ एहसास कराती हैं।
दील मे बदलाव की एक लौ जलाती है॥

ये बदलाव मुझ मे नहीं सब मे लाना हैं।
ये दर्द भरी हकीकत मुझे नहीं सुहाती है॥

हर कदम पर मेरा दील कचोट सा जाता हैं।
हर राह धड़कन को राग नया सुनती हैं॥

देखता हु जब कभी झूठन उठाते भीखारी को।
मेरी आत्मा भी भीखारी बन जाती हैं॥

सब को खाते देख होटल पर ।
मेरी भूख और बढ़ जाती है॥

पर जब रोक नहीं पाता हु खुद को ।
झूठन को खाने की याद आती है॥

देखता हु पहले सबका चेहरा ।
मुझे दुनीया खुद भीखारी नजर आती हैं॥

लोग भले भीखारी लगे।
पर झूठन मुझे बुलाती हैं॥

में भीखारी क्यों दुनीया बदलू ।
जब झूठन ही मेरी भूख मीटाती है॥

पर लगता है कोई सोच रहा है।
गर ऐसा हैं तो यही मुझे शाबाशी हैं॥

तेरा भीखारी बन ना व्यर्थ नहीं गया डंडी ।
गर ये कविता जरा भी बदलाव लाती हैं॥

[j[)]
06/09/10