~~ * साहेबा * ~~
आपके ख्वाबो में जो कोई थी ,
आपके ख्यालो में वो खोई थी।
उसकी मंजिल बस आप थे और,
आपकी भी ख्वाहिश वोही थी।।
उसकी आँखे लाल - लोही थी,
जैसे रक्त में डुबोयी थी,
जी हा ! आपके ही कारण वो ,
रात -भर जो रोई थी ॥
दिन में भी खोई थी,
वो जो रात में ना सोई थी।
आपकी ही यादे उसने ,
जाने कब से संजोई थी॥
जाने कब से संजोई थी॥
[j[)] ३०/०९/२००८
यह कविता मेरे एक खास दोस्त मिस्टर खान साहिब (अब्दुल वाहिद ) को संबोधित है जो मेरी तरफ़ से उसके लिए एक तोहफा मात्र है। इस कविता मे मैने कूछ मिथ्या कल्पनाओ को साकार रूप देने कि कोशिश हैं
परन्तु यह पूर्ण रूप से काल्पनिक है ॥
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